फोटो :फाइल फोटो
जयपुर , 05 दिसम्बर
3 दिसंबर को राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे आए , जिनमे भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल गया । लेकिन असली परीक्षा तो अब है सीएम कौन बनेगा , इस सवाल का जवाब हर राजस्थान वासी चाह्हता है । 4 दिसंबर को भाजपा के 47 नवनिर्वाचित विधायकों ने जयपुर में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के सरकारी आवास पर उपस्थिति दर्ज करवाई। कई विधायकों ने राजे के घर के बाहर ही मीडिया से कहा कि वे मुख्यमंत्री के तौर पर वसुंधरा राजे को पसंद करते हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर राजे के घर पहुंचने वाले 47 विधायकों की संख्या कहां से आई? 5 दिसंबर को अखबारों में यह तो छपा है कि वसुंधरा के घर 47 विधायक पहुंचे, लेकिन इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि 47 विधायकों की गिनती किसने की। 47 विधायक आए हैं इसकी विज्ञप्ति वसुंधरा राजे के घर से भी जारी नहीं हुई। जो मीडिया कर्मी 4 दिसंबर को वसुंधरा राजे के घर के बाहर खड़े थे, उनका कहना रहा कि विधायकों की संख्या घर के अंदर से ही बताई जा रही है, लेकिन इस संख्या की कोई अधिकृत जानकारी नहीं है। 3 दिसंबर को घोषित नतीजों में भाजपा को 115 सीटें मिली हैं, यानी 115 नवनिर्वाचित भाजपा विधायकों में से 47 ने यह दर्शा दिया है कि मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी पहली पसंद वसुंधरा राजे हैं। हालांकि घर आने वाले विधायकों पर वसुंधरा राजे ने अभी तक कोई बयान जारी नहीं किया है, लेकिन 47 विधायकों के घर आने की खबरें चार दिसंबर को तब न्यूज चैनलों पर प्रसारित करवाई गई, जब दिल्ली में मुख्यमंत्री के नाम को लेकर कवायद चल रही थी।
दूसरी तरफ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी और प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। स्वाभाविक है कि यह मुलाकात मुख्यमंत्री के पद को लेकर हुई। एक ओर दिल्ली में भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व सीएम पद को लेकर मंथन कर रहा है तो वहीं दूसरी तरफ जयपुर में राजे के घर पर 47 विधायकों के पहुंचने की बात कही जा रही है। चार दिसंबर को नवनिर्वाचित विधायक जयपुर आए इसके लिए भाजपा संगठन की ओर से कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए थे। अभी तो अधिकांश नवनिर्वाचित विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्रों में ही स्वागत सत्कार करवा रहे हैं। किसी भी विधायक के पास फुर्सत नहीं कि वह नतीजे के अगले ही दिन जयपुर आए। लेकिन फिर भी 47 विधायकों का दावा बता रहा है कि प्रायोजित तरीके से विधायकों को जयपुर बुलाया गया है।
यह सही है कि पूर्व सीएम राजे प्रदेश भर में लोकप्रिय हैं, लेकिन इस बार भाजपा ने राजे के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा था। 2003 और 2013 में राजे को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था, लेकिन 2023 में कमल का फूल ही भाजपा का चेहरा था। अब भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व माने या नहीं, लेकिन विधायक दल की बैठक से पहले वसुंधरा राजे ने अपना शक्ति प्रदर्शन कर दिया है। सवाल यह भी उठता है कि क्या यह शक्ति प्रदर्शन राष्ट्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए है।
70 विधायकों का समर्थन:-
जयपुर में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से विधायकों के मिलने का सिलसिला 5 दिसंबर को जारी रहा। माना जा रहा है कि पांच दिसंबर को भी दिन भर सीएम राजे नवनिर्वाचित विधायकों से मुलाकात करे। इस बीच राजे समर्थक विधायक कालीचरण सराफ ने दावा किया है कि चार दिसंबर को 70 विधायकों ने वसुंधरा राजे से मुलाकात कर अपना समर्थन जताया है।
गहलोत का कथन:
3 दिसंबर को मतगणना से दो घंटे पहले कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि चुनाव के बाद भाजपा में रिवॉल्ट (विद्रोह) होगा। गहलोत ने यह दावा किस आधार पर किया यह तो वे जाने, लेकिन चार दिसंबर को जिस तरह भाजपा के 47 विधायकों ने पूर्व सीएम राजे के घर पर उपस्थिति दर्ज करवाई उससे अनेक आशंकाएं हो रही है। सवाल यह भी है कि क्या अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के बीच कोई तालमेल है? इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में पता चलेगा, लेकिन चुनाव से चार महीने पहले तक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट यह आरोप लगाते रहे कि अनेक मुद्दों पर गहलोत और राजे में मिली भगत है।
पायलट का यह भी आरोप रहा कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर गहलोत राजे एक है, इसलिए भाजपा के पिछले शासन में हुए भ्रष्टाचार की जांच नहीं करवाई जा रही है। इतना ही नहीं सीएम गहलोत ने भी सार्वजनिक तौर पर कहा था कि उनकी सरकार को बचाने में वसुंधरा राजे का सहयोग रहा है। अब देखना होगा कि वसुंधरा राजे की वजह से राजस्थान की राजनीति में जो हालात उत्पन्न हुए हैं, उनका मुकाबला भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व किस प्रकार से करता है।
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