फोटो :फाइल फोटो
नीमकाथाना , 17 सितम्बर 2024
नीमकाथाना जिले की बबाई उप तहसील की ग्राम पंचायत गडराटा में बाबा सवाइ सुन्दरदास का मेले में जनसैलाब उमड़ा है । मेले में आसपास के जिलो के अलावा हरियाणा से भक्त आते है । मेला विशेषतया जात जडुलो के लिए जाना जाता है । जहाँ दूर दूर से लोग आते है। मेला लगभग 1 किलोमीटर क्षेत्र से भी अधिक में है ।
मेले में लोगो का उत्साह देखने को मिल रहा है । दूर दराज से आए लोग झूला झूलने और सर्कस देखने को लेकर बहुत उत्सुक है । विशेषकर बच्चो में इसको लेकर अधिक उत्सुकता है । सर्कस की तरफ से आवाज आ रही है टिकट टिकट । वही बच्चे ट्रेन में बैठकर आंनद ले रहे है ।
मेला हमे भारत की वास्तविक तस्वीरे पेश करता है । सभी के चेहरे पर ख़ुशी की झलक देखने को मिलती है । हमारे बड़े बुजुर्गो ने जिस उद्देश्य को लेकर मेले की शुरुआत की । शायद उसके दर्शन हमने आज किए है । हमारी टीम ने उस वास्तविकता को भी परखने की कोशिश की है कि क्या वास्तव में आज भी मेले का स्वरूप है जो पहले हुआ करता था ।
मेले है अर्थव्यवस्था की कड़ी :-
मेलो का उल्लेख हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथो में भी मिलता है। मेले ग्रामीणों को एक तरह से बाजार उपलब्ध करवाने का माध्यम है । जहाँ पर ग्रामीण स्वनिर्मित उत्पाद मेले में सेल कर अपने लिए अर्थाजन करते है । वही लोगो को एक ही जगह सभी उत्पाद मिल जाते है । मेलो में मिटटी के बर्तन सहित अनेक उत्पाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था की झलक दिखाते है ।
चायनीज उत्पादों ने तोड़ी कमर :-
धीरे धीरे भारतीय बाजार में चायनीज उत्पादों की भरमार देखने को मिल रही है । बाजार में चायनीज उत्पादों की भरमार से ग्रामीण लघु उद्योग चोपट होने लगे है । सरकारे कहने को तो चायनीज उत्पादों का बायकाट करवाती है लेकिन ऑफिसियल तौर पर बढ़ावा दिया जा रहा है । अगर आंकड़ो की बात करें तो लगातार चायनीज उत्पादों में बढ़ोतरी हो रही है । मिटटी के तवे की जगह चायनीज तवे ने जगह ले ली । इतना ही नही हर ग्रामीण उत्पाद की जगह चायनीज उत्पाद ने ले ली है । जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था विलुप्ति के कगार पर है ।
देश में धीरे धीरे कोर्पोरेट ने जगह ले ली है । सरकारे भी बड़ी बड़ी कम्पनियों को बढ़ावा दे रहे है । इसलिए इन मेले को शुरू करने का जो उद्देश्य था वह कही विलुप्त होता जा रहा है । कही ना कही लोग भी स्वदेशी की बजाय चायनीज सहित अन्य विदेशी उत्पादों की तरफ आकर्षित हो रहे है ।
विशाल भंडारे :-
मेले में भक्त अपनी तरफ से भंडारे का भी आयोजन करते है । भंडारा एक तरह से प्रसाद का ही माध्यम है । इसके पीछे का तर्क ये है कि दूर दराज से आने वाले भक्तो के लिए जल पान की व्यस्वस्था करके भक्त अपने आपको पूण्य मानते है । मेले में देखा भी जा सकता है कि प्रसाद ग्रहण करने को लेकर लम्बी लम्बी लाइने लगी है । मंदिर में भी बाबा के दर्शन करने में समय लग रहा है । इसके लिए क्रमबद्ध लाइन लगी हुई है ।
बदलाव और सोच बदलने की जरूरत :-
आज हम उस मुहाने पर जहाँ पर हम ना तो पूर्ण रूप से पश्च्मि है और ना भारतीय । ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने सब कुछ आधा अधुरा अपनाया है । हमे खुद में अपनी संस्कृति के लिए कितना प्रेम है ये भी जानने की जरूरत है । मेले जो एक तरह से हाट बाजार का माध्यम बनकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीड की हड्डी हुआ करते थे , क्या फिर से हमारी उस अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का माध्यम बनेंगे ?
यह सब बदलाव और सोच से ही संभव होगा । जिस तरह से पर्यावरण में पारिस्थितिकी तंत्र होता है । वैसे ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मेले उस तंत्र का एक हिस्सा है । शरीर से एक भी हिस्से को अलग करना मतलब , शरीर में विकृता उत्पन्न करना होता है । इसलिए हमे बदलाव के साथ हमारी इस अर्थव्यवस्था को फिर से पुनर्जीवित करना होगा ।
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