वीडियो न्यूज : नीमकाथाना जिला अस्पताल में लगी 4.5 लाख रुपए की मशीन : ऑटो एकॉस्टिक एमिशन मशीन का शुभारंभ, जन्म के तुरंत बाद हो सकेगी नवजात शिशुओं की सुनने की क्षमता की जांच

फोटो  : फाइल फोटो 

नीमकाथाना, 16 नवंबर 2025
रिपोर्ट  : किशोर सिंह लोचिब 

राजस्थान सरकार लगातार चिकित्सा क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रही है । इसी की बदौलत नीमकाथाना जिला अस्पताल में अब नवजात शिशुओं की सुनने की जांच (न्यूबॉर्न हीयरिंग स्क्रीनिंग) जन्म के तुरंत बाद ही की जा सकेगी।

अस्पताल के एसएनसीयू कक्ष में लगभग 4.5 लाख रुपए की लागत से अत्याधुनिक ऑटो एकॉस्टिक एमिशन मशीन स्थापित की गई है। जिसका विधिवत रूप से पीएमओ डॉक्टर कमल सिंह शेखावत ने शुभारंभ किया गया। इस मशीन के माध्यम से अब नवजात शिशुओं की सुनने की क्षमता की जांच यहीं जिला स्तर पर हो सकेगी। पहले परिजनों को अपने बच्चों की जांच के लिए जयपुर या सीकर तक दौड़ लगानी पड़ती थी, लेकिन अब उन्हें इस परेशानी से मुक्ति मिलेगी।

शुभारंभ के अवसर पर जिन शिशुओं की जांच की गई, उनकी रिपोर्ट नेगेटिव पाई गई। अस्पताल में लगातार नई और अत्याधुनिक मशीनों के इंस्टॉलेशन से स्वास्थ्य सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है। इससे मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं मिल रही हैं और जिले के लोगों को बड़े शहरों की निर्भरता से राहत मिल रही है।

समय हो सकेगा का उपचार :-
अस्पताल के पीएमओ डॉ कमल सिंह शेखावत ने बताया कि इस मशीन से नवजातों के कानों में सुनाई की क्षमता का पता लगाया जा सकेगा। यदि किसी बच्चे में जन्मजात बहरापन पाया जाता है तो उसका पता शुरुआती अवस्था में ही लग जाने से समय पर इलाज और कॉक्लियर इंप्लांट की प्रक्रिया शुरू की जा सकेगी। इससे बच्चों को भविष्य में गूंगा और बहरा होने से बचाया जा सकेगा।

अस्पताल में प्रतिदिन 15 से अधिक प्रसव होते हैं, ऐसे में सभी नवजातों को घर भेजने से पहले ही सुनाई जांच की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। पहले प्रसव के बाद प्रसूता व नवजात को छुट्टी देकर परिजन घर ले जाते थे, जिससे बच्चे की सुनने की क्षमता की जानकारी तीन से चार वर्ष की आयु तक नहीं हो पाती थी।

ग्रामीण क्षेत्र मे जानकारी कि कमी :-
चिकित्सकों के अनुसार इस स्थिति में बच्चे की सुनने की समस्या देर से सामने आती है। अवेयरनेस रखने वाले शहरी परिवार तो समय पर जांच करवा लेते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या ज्यादा रहती है। जब तक परिजनों को बच्चे के नहीं सुन पाने की जानकारी मिलती है, तब तक काफ ी देर हो जाती है और कई बार विकलांगता प्रमाणपत्र बनवाने की नौबत आ जाती है।

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